Thursday, December 1, 2011

छोटे दुकाननदारों को नहीं खतरा !

पंडित-: रिटेल मार्केट को विदेशी कंपनियों के लिए खोलने के फैसले पर जो विरोध हो रहा है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है.

यह फैसला बहुत सोच-समझ कर लिया गया है. इससे हमारी अर्थव्यवस्था को गति मिल सकती है. एफडीआई की मंजूरी के बाद पूंजी जुटाने की समस्या काफी हद तक दूर हो जाएगी. यह मुद्दा वर्षों पुराना है. एनडीए के दौर से ही इस पर बात चल रही है. नीतिगत स्तर पर फैसले लेने में देरी पर सवाल भी उठे थे.

लेकिन अब जब कि सब पटरी पर है, विरोध के स्वर उठने लगे हैं. गौर करन वाली बात यह है कि देश में पिछले दस सालों में कई रिटेल कंपनियां उभरी हैं. विभिन्न शहरों में इनके स्टोर हैं लेकिन कहीं से भी प्रत्यक्षत: यह बात सामने नहीं आई कि छोटे किराना दुकानदारों का धंधा चौपट हुआ हो. फिर सरकार ने संभावित कुछ खतरों से निपटने के लिए इसमें कुछ प्रावधान भी कर रखे हैं. ऐसे में छोटे दुकानदारों के लिए डरने वाली कोई बात नहीं है.

आज देश में रिटेल का बाजार प्रतिवर्ष 12 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है. हमारी आर्थिक विकास दर चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में छह दशमलव 9 प्रतिशत की रही है जो पिछले दो सालों में सबसे कम है. जाहिर है वैश्विक अर्थव्यवस्था का मंदी के दौर में जाने का असर हम पर भी पड़ रहा है. ऐसे में रिटेल में निवेशकों के आने से हमारी अर्थव्यवस्था को गति ही मिलेगी. फिर लाखों लोगों को रोजगार मिलना भी तय है.

विपन्नता के दौर में फंसे किसानों का भी अपनी उपज का वाजिब दाम मिलेगा. कालाबाजारियों और बिचौलियों पर आफत आएगी. इतना ही नहीं, फल-सब्जी और अनाज के भंडारण में भी करोड़ों का निवेश होगा जिससे इनकी बर्बादी रुकेगी. इससे कृषि क्षेत्र की विकास दर में बढ़ोतरी तय है. जो इस आशंका में हैं कि ऐसा होने से कीमतें बढ़ेंगी, वे भ्रम में हैं. कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा के कारण हर हाल में कीमतों पर नियंत्रण बना रहेगा. एक अनुमान के मुताबिक अगले पांच सालों में इससे 10 बिलियन डॉलर की राशि अपने देश में आएगी, जो अर्थव्यवस्था के लिए पुश अप का काम करेगी.

मेरी समझ से सरकार ने एक समझ भरा और संतुलित कदम उठाया है. सरकार ने केवल उन्हीं शहरों में रिटेल स्टोर खोलने की इजाजत दी है, जहां की आबादी 10 लाख से अधिक है. ऐसे में छोटे शहरों और कस्बे के कारोबारियों पर तो कोई असर ही नहीं पड़ने वाला. रही बात बड़े शहरों की तो वहां भी अप्रत्यक्ष तौर पर कारोबारियों को नुकसान नहीं होने वाला. मैंने बड़े शहरों में मौजूद देसी रिटेल स्टोर का प्रभाव कहीं भी गलत नहीं देखा है.

ये स्टोर और हाट-बाजार या छोटी दुकानें एक-दूसरे के पूरक के तौर पर ही काम करती हैं. विदेशी कंपनियां कहीं से भी किसी का नुकसान करने की स्थिति में नहीं होंगी. यहां तक कि उन्हें अपनी पूंजी का एक बड़ा हिस्सा कोल्ड स्टोरेज चेन बनाने और कच्चे सामान की परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त करने में लगाना होगा. इतना ही नहीं, कुल खरीद का 30 प्रतिशत हिस्सा उन्हें छोटे और मझोले उद्यमों से उठाना होगा. ऐसे में नुकसान होने की बात समझ से बाहर है.

बहरहाल, आशंका की कोई वजह नहीं. आशंका तो तब भी व्यक्त की गई थी जब देश ने आर्थिक सुधार की नीति पर चलने का फैसला लिया था. कहा गया था कि देश की कंपनियां प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाएंगी लेकिन हुआ इसका उल्टा. अत: हमें विदेशी निवेश को लेकर डर का माहौल बनाने की जरूरत नहीं है. पूंजी निवेश हमारी जरूरत है और इससे हमारे बाजार को मदद ही मिलेगी. इंफ्रास्ट्रक्चर सुधरेगा और बाजार में तरलता आएगी. सरकार को चाहिए कि विरोध के बाद वे अपने कदम न खींचे बल्कि विरोधियों को इसके सकारात्मक पहलुओं से वाकिफ करवाएं.

4 comments:

  1. आशंका की कोई वजह नहीं सरकार को चाहिए कि विरोध के बाद वे अपने कदम न खींचे बल्कि विरोधियों को इसके सकारात्मक पहलुओं से वाकिफ करवाएं.

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  2. टिप्पणी के लिए धन्यबाद राजेश्वर राजभर जी

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  3. टिप्पणी के लिए धन्यबाद

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