Tuesday, August 6, 2013

रुपये की कीमत सर्वकालिक निचले स्तर पर

पंडित : अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में मंगलवार को भी गिरावट रही, और वह 61.80 प्रति डॉलर के सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया। मुद्रा बाजार में मंगलवार के कारोबार के शुरुआती दौर में ही रुपये में यह गिरावट दर्ज की गई, हालांकि बाद में वह कुछ सुधरकर 61.57 के स्तर पर पहुंच गया।

उल्लेखनीय है कि 8 जुलाई को भी रुपये ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 61.21 का रिकॉर्ड निचला स्तर छुआ था। वैसे सोमवार को भी रुपया गिरावट के साथ 60.88 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था। उधर, यह गिरावट इसलिए भी उल्लेखनीय और आश्चर्यजनक है, क्योंकि डॉलर में भी कुछ अन्य बड़ी मुद्राओं की तुलना में गिरावट दर्ज की गई है। इस गिरावट का असर शेयर बाज़ारों पर भी पड़ा है, और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का संवेदी सूचकांक सेंसेक्स भी मंगलवार को लगभग डेढ़ महीने बाद एक बार फिर 19,000 के स्तर से नीचे पहुंच गया। पिछली बार सेंसेक्स 19,000 से नीचे इसी साल 27 जून को गया था।

बताया जा रहा है कि अमेरिका में रोजगार के नए आंकड़ों के आने के बाद अमेरिका के केंद्रीय ने बैंक ने आर्थिक सुधारों के लिए दी जा रही छूट में सावधानी से कमी करने का मन बनाया है। पिछले हफ्ते भी रुपये में रिकॉर्ड गिरावट देखी गई थी, जो करीब 22 महीने की सबसे बड़ी गिरावट थी। मात्र पिछले सप्ताह में भारत की इस आंशिक रूप से परिवर्तनीय मुद्रा में 3.4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। उल्लेखनीय है कि आरबीआई द्वारा रुपये की गिरती साख को बचाने के लिए लगातार किए जा रहे प्रयासों के बावजूद रुपये का इस तरह कमजोर होना जारी है।

आरबीआई को भी उम्मीद है कि रुपये की मजबूती के लिए देश में विदेशी निवेश की आवक बढ़नी चाहिए, वहीं सरकार ने कदम के सामने विपक्षी दलों की मांग एक रोड़े के रूप में काम कर रही है।

Friday, March 15, 2013

गैलेक्सी एस4

सैमसंग ने अपने मोस्ट वेटिंग स्मार्टफोन गैलेक्सी एस4 को लॉन्च कर दिया। न्यूयॉर्क में एक भव्य प्रोग्राम (जिसकी तस्‍वीरें आगे के स्‍लाइड्स में आप देख सकेंगे) में सैमसंग मोबाइल कम्युनिकेशन के हेड जे. के. शिन ने इसे पेश किया।

गैलेक्सी एस4 में कई नए आकर्षक फीचर्स हैं। 13 मेगापिक्सल कैमरे के साथ इस स्मार्टफोन से 4 सेकंड में 100 शॉट लिए जा सकेंगे। एस4 में रियल टाइम ट्रांसलेटर के रूप में सैमसंग ने एक जबरदस्त फीचर जोड़ा है। इसकी मदद से किसी भी दूसरी भाषा को अपनी भाषा में ट्रांसलेट किया जा सकेगा।
गैलेक्सी एस4 में आई ट्रैकिंग फीचर भी दिया गया है। इसकी मदद से मोबाइल से नजर हटते ही वीडियो अपने आप रुक जाएगा। दोबारा मोबाइल की तरफ देखने पर वहीं से वीडियो फिर से प्ले हो जाएगा। दिलचस्प है कि सैमसंग के इस फोन से सोनी एक्सपीरिया जेड10, ब्लैकबेरी जेड 10, एचटीसी वन और आईफोन 5 जैसे फोन को तगड़ी टक्कर मिलने की बात की जा रही है।

Sunday, September 23, 2012

सवाल प्रधानमंत्रीजी से कारपोरेट जगत ख़ास या आम इन्सान सवाल यह भी है कि इसी दौर में पश्चिमी मीडिया ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर आर्थिक सुधार को लेकर ना सिर्फ सीधा निशाना साधा बल्कि इतिहास के पन्नो में असफल प्रधानमंत्री की दिशा में बढ़ते कदम की लकीर भी खींच दी। 8 जुलाई को टाइम मैग्जीन ने मनमोहन सिंह को कवर पर छाप कर अंडरएचीवर का तमगा दिया। हफ्ते भर बाद ही 16 जुलाई को ब्रिटेन के अखबार द इंडिपेन्टेंट ने आर्थिक सुधार के पुरोधा के तौर पर वित्त मंत्री के पद से शुरु हुये मनमोहन सिंह को एक कमजोर और बंधे हाथ के साथ पीएम की कुर्सी पर बैठे देखा। वहीं 5 सितंबर को वाशिंगटन पोस्ट ने तो मनमोहन सिंह की खामोशी में एक त्रासदीदायक पीएम की छवि देखी, जो दांत के डाक्टर के पास जाकर भी मुंह नहीं खोलते हैं। तो अब माना क्या जाये कि देश के सबसे पिछड़े इलाके संथाल परगना से लेकर दुनिया के सबसे विकसित देश अमेरिका तक में जब मनमोहन सिंह ही मनमोहन सिंह है तो यह लोकप्रियता है या फिर त्रासदी। यह सवाल इसलिये क्योंकि मौजुदा वक्त में देश की मुख्यधारा की मीडिया में भी अस्सी फीसदी हिस्सा मनमोहन सिंह के ही इर्द-गिर्द रचा हुआ है। राष्ट्रीय पत्रिका इंडिया टुडे तो कवर पेज पर "सरकार का मुंह काला" तक लिखती है। लेकिन क्या कांग्रेस सरकार आह तक नहीं करती। आह करती है तो टाइम मैग्जीन या वाशिंगटन पोस्ट पर, उसकी रिपोर्ट को लेकर, जिसकी कुल जमा आठ हजार कापी ही भारत आती हैं। जबकि देश भर में जितनी पत्र पत्रिकाओं में मनमोहन सिंह निशाने पर हैं, अगर उसका आंकड़ा जमा करे तो दस करोड़ पार कर जाएगा। तो क्या यह माना जा सकता है कि मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री होकर भी भारत के भीतर भारत से इतर एक नया समाज बनाने में लगे रहे। जिसकी जमीन आर्थिक सुधार पर खड़ी है। यह सवाल इसलिये क्योंकि टाइम, इंडिपेन्डेंट और वाशिंगटन पोस्ट के निशाने पर मनमोहन सिंह आर्थिक सुधार को ना चला पाने को लेकर ही है। यह तमाम पत्रिकायें ही मनमोहन सिंह का सच यह कहकर बताती हैं कि 24 जुलाई 1991 में भारत के दरवाजे जिस तरह वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने दुनिया के लिये खोले वह अपने आप में एक अद्भभूत कदम था। हर रिपोर्ट दुनिया की अर्थव्यवस्था में भारत की मौजूदगी दर्ज कराने के लिये मनमोहन सिंह को ही तमगा देती है। चाहे न्यूक्लियर डील हो या एक दर्जन सरकारी सेक्टर का दरवाजा विदेशी निवेश के लिये खोलने की पहल। वाह-वाही मनमोहन सिंह की पश्चिमी मीडिया झूम झूम कर करता है। लेकिन झटके में 2009 के बाद जब राडिया टेप से कलाई खुलनी शुरु होती है कि असल में देश में सरकार बनी तो नागरिकों के वोट से है लेकिन सारी नीतियां कारपोरेट के लिये कारपोरेट ही अपने कैबिनेट मंत्रियों की जरीये बना रहा है, चला रहा है तो कई सवाल देश के भीतर भी खड़े होते है और कारपोरेट घरानों को भी समझ में आता है कि कौन सा घराना यूपीए-1 के दौरान लाभ पाकर बहुराष्ट्रीय कंपनी होने का तमगा पा गया और कौन सा कारपोरेट संघर्ष करते हुये मंत्रियों और नौकरशाही के जाल में ही उलझता रहा।देश के पांच टॉप मोस्ट कारपोरेट इस दौर में खुद को बहुराष्ट्रीय इसलिये बना गये क्योंकि उन्हें देश चलाने की छूट विकास के नाम पर नीतियों के आसरे मिली और उसकी कमाई से देसी कारपोरेट ने दुनिया के दर्जन भर देशों की कंपनियों को खरीद लिया। यह खरीदारी खनन से लेकर स्टील और ऊर्जा से लेकर कार की खरीद तक रही। यह सवाल बीते ढाई बरस में कही ज्यादा तीखे या त्रासदीदायक इसलिये भी हुये क्योंकि 2 जी स्पेक्ट्रम के साथ ही क्रिक्रेट के नाम पर आईपीएल के धंधे। कामनवेल्थ के सफल आयोजन से राष्ट्रीयता का टीका लगाने में लूट। और देश के खनिज संसधानों की लूट के लिये देश का दरवाजा ही नहीं सुरक्षा की दीवार भी गिराने का सच सामने आया। सुरक्षा का सवाल इसलिये क्योंकि खनिज संपदा की लूट में जुटी देसी कारपोरेट के कर्मचारी-अधिकारियों में विदेशी नागरिको की भरमार है। जापान, चीन, आस्ट्रेलिया, ब्रिट्रेन, कोरिया और अमेरिकी अधिकारी देश के उन पिछडे इलाको में खुले तौर पर देखे जा सकते हैं जहां खनन से लेकर पावर प्लांट का काम हो रहा है। जबकि देश में इंदिरा गांधी ने ही कोल इंडिया के राष्ट्रीयकरण के साथ यह कानून भी जोड़ा था कि कोई विदेशी नागरिक भारत के खनिज संपदा इलाको में किसी भी तरह की कोई नौकरी नहीं कर सकता। क्योंकि नेहरु के दौर से ही खनिज संपदा को देश की राष्ट्रीय सपंत्ति मानी गई। साथ ही यह माना गया कि देश की खनिज संपदा की जानकारी कभी विदेशियों को नहीं होनी चाहिये। यानी सुरक्षा के लिहाज से देश ने माना खनिज संपदा ही अपनी है और इस पर आंच आने नहीं दी जायेगी। लेकिन यह किसे पता था कि आर्थिक सुधार का मतलब खनिज संपदा को अंतराष्ट्रीय बाजार के लिये खोलना ही होगा। तो क्या इस दौर में मनमोहन सिंह की अर्थव्यवस्था ने भारत को दुनिया का ऐसा केन्द्र बना दिया, जहां उपभोक्ता खुली मंडी के तौर पर भारत को देखे। कुछ हद तक यह माना जा सकता है क्योंकि मौजूदा वक्त में भारत के संचार, जहाज रानी, नागरिक उड्डयन, इन्फ्रास्ट्कचर, उर्जा, आईटी और खनन के क्षेत्र में दुनिया 135 निजी कंपनियां परोक्ष या अपरोक्ष तौर पर काम कर रही हैं। और दुनिया के 100 से ज्यादा उघोग अलग अलग क्षेत्र में भारत को मशीन या तकनालाजी उपलब्ध करा रहे हैं। यानी समूची दुनिया में भारत अपनी तरह का पहला देश है, जहां सीरिया या इरान सरीखा सकंट नहीं है। बल्कि सरकार को अब भी जनता चुनती है।लेकिन दुनिया की सबसे ज्यादा निजी कंपनियों की अर्थव्यवस्था या कहें मुनाफा भारत पर टिका है। सीरिया या ईरान का जिक्र इसलिये क्योंकि वाशिंगटन पोस्ट में पीएम की धुनाई के बाद पीएमओ में बैठे मीडिया सलाहकारो ने यही फैलाया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह चूंकि गुटनिरपेक्ष सम्मेलन में ईरान के साथ खड़े हुये। सीरिया के सवाल को उठाया और दुनिया के निजाम को बदलने का वक्तव्य दिया तो मनमोहन सिंह पर अमेरिका अब निशाना साध रहा है। इसमें दो मत नहीं कि इरान या सीरिया को लेकर अमेरिका जैसा सोचता है, वैसा भारत ना सोच रहा है और ना ही अमेरिका के अनुकुल कदम उठा रहा है। यानी अमेरिका की नाखुशी जग-जाहिर है। लेकिन इस दौर में क्या मनमोहन सिंह भी सीरिया या ईरान के शासको की तरह बर्ताव कर पा रहे हैं। जहां पहले उनके अपने नागरिक उनका अपना देश हो। जाहिर है मनमोहन सिंह की साख देश में घटी भी इसलिये है क्योंकि वह बतौर इक्नॉमिस्ट कम पीएम जो लकीर खिंच रहे हैं, उसमें देश के अस्सी करोड नागरिक कहां-कैसे फिट बैठ रहे हैं, यह एक अबूझ पहली है। और जिन 20-30 करोड़ नागरिकों के जरीये भारत के भीतर एक अलग विकसित समाज बनाने का जो ताना बना बुना जा रहा है, उसका सच इतना त्रासदीदायक है कि पश्चिमी या देसी मीडिया की कोई भी हेडलाइन कमजोर पड़ जाये। मसलन जिस पहली दुनिया में मनमोहन सिंह को मान्यता है, उसी दुनिया की सूची (वर्ल्ड इक्नामिक फोरम) में भारत इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिहाज से विकास के पायदान पर 59 वें नंबर पर है । और देश के भीतर के हालात ऐसे है कि सिर्फ 35 करोड़ लोगों को ही आज की तारीख में 24 घंटे बिजली मिल सकती है। बाकियों को अंधेरे में रहना होगा। और उपलब्ध बिजली के बंटवारे के बाद किसानों के खाते में हर दिन सिर्फ 30 मिनट बिजली आएगी।कोयला, बाक्साइड, गैस, पेट्रोल, डीजल, खाद, बीज और पानी तक की कीमत क्या होगी, यह चुनी हुई सरकार तय नहीं कर सकती। बल्कि जिन कंपनियों ने इनका ठेका लिया है या कहीं जो उनके उत्पादन से लेकर बांटने में लगी है, उन्हीं का मुनाफा तय करता है कि आम नागरिक को कितनी कीमत चुकानी है। इस घेरे में पढाई-लिखाई और इलाज को भी लाया जा चुका है। लेकिन इन सबसे जुड़े कंपनियों को सरकार कितना सब्सिडी जनता या देश के पैसे में से दे देती है, यह भी हैरतअंगेज सच है। सरकार ने कॉरपोरेट सेक्टर को टैक्स देने में बीते तीन बरस में 2 लाख करोड से ज्यादा की छूट दे दी। यानी वह ना चुकाये। और इसी तरह एक्साइज में 423294 करोड़ और कस्टम में 621890 करोड की छूट दे दी। आप इसे कारपोरेट को मिलने वाली सब्सिडी भी कह सकते हैं।सवाल प्रधानमंत्री जी से कारपोरेट जगत ख़ास या आम इन्सान..

Friday, June 1, 2012

यूपी बजट 2012: वादों और इरादों का मेल


लखनऊ। उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने शुक्रवार को अपना पहला बजट पेश किया। कुल दो लाख 10 हजार करोड़ रुपये का बजट पेश किया गया। इसमें चुनावी वादों को पूरा करने के साथ-साथ कुछ आधारभूत लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयास दिखता है। पिछले बजट की तुलना में यह 18 प्रतिशत अधिक है। 13 हजार 650 करोड़ की कुल 280 योजनाएं लाई जाएंगी। चिकित्सा सुविधाओं के लिए 7033 करोड़ का प्रावधान किया गया है। वादों को पूरा करने की दिशा में छात्रों को लैपटॉप और टैबलेट के लिए 2720 करोड़ की बात बजट में है। पेट्रोल पर सभी की नजरें थीं, लेकिन वैट में कोई कटौती नहीं हुई, लिहाजा लोगों को इसमें राहत नहीं मिल सकी। दिलचस्प बात यह भी रही कि पूर्ववर्ती माया सरकार में चल रही योजनाओं के नाम अब सपा के नेताओं के नाम पर रख दिए गए हैं।
मुख्य बातें:-
1. दो लाख 10 हजार करोड़ रुपये का बजट
2.13 हजार 650 करोड़ की कुल 280 योजनाएं
3. चिकित्सा सुविधाओं के लिए 7033 करोड़
4. पेट्रोल नहीं होगा सस्ता [वैट में कटौती नहीं]
5. टैबलेट के लिए 302 करोड़ रुपये और लैपटॉप के लिए 2418 करोड़ रुपये
6. सौर ऊर्जा के लिए 100 करोड़ रुपये
7. आसरा योजना के लिए 100 करोड़ रुपये
8. बैटरी रिक्शा के लिए 100 करोड़ [गरीब रिक्शे वालों को मिलेगा लाभ]
9. बुंदेलखंड के किसानों के लिए 900 करोड़
10. किसान बीमा एक लाख से बढ़ाकर पांच लाख
11. लोहिया आवास योजना की होगी शुरुआत
12. अल्पसंख्यक कल्याण के लिए 274 करोड़
13. चुनावी वायदों को पूरा करने के लिए 2700 करोड़

Monday, December 26, 2011

अगले माह पेट्रोल में 1 रु. की मूल्यवृद्धि संभव

पंडित  : डॉलर के मुकाबले कमजोर होते रुपये ने सरकारी तेल कंपनियों को पेट्रोल के दामों में फिर से समीक्षा करने को मजबूर कर दिया है। भारत में ज्यादातर कच्चा तेल आयात किया जाता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपये के गिरते भाव से भारत में तेल आयात करना महंगा हो गया है।

सूत्रों की माने तो पेट्रोल के दाम में एक रुपये की बढ़ोतरी की जा सकती है। हलांकि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर इसपर राजनैतिक सहमति भी जरूरी होगी। माना यह भी जा रहा है कि सरकार के ज्यादातर घटक दल इससे सहमत नहीं हैं।
जब से पेट्रोल के दाम को नियंत्रण मुक्त कर दिया गया है तभी से सरकारी तेल कंपनियां हर महीने के 1 और 16 तारीख को पेट्रोल के दामों की समीक्षा करती है। 31 दिसंबर को इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम जैसी बड़ी कंपनियां फिर से इसकी समीक्षा कर सकती हैं। इसमें एक रुपये का इजाफा संभव है। फिलहाल दिल्ली में पेट्रोल 65.64 रुपये प्रति लीटर मिल रहा है।

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